कुछ लोग जिवन मे बङी मेहनत व लगन के साथ तिर्थ,तप, जप,पूजा पाठ, दान धर्म तो करते है, मगर माता-पिता, गुरुदेव, कुलदेवी और देवता ,स्थान देवता, ग्राम देवता, क्षेत्रपाल देवता, वास्तु देवता, आदि का तिरस्कार करते हैँ। धिक्कार है फिर भी जीवन मे अच्छे पद प्रतिष्ठा, पैसा, उतम स्वास्थय व सेवा भावी सन्तान कि कामना करते है। ऐसे लोगो को भटकते मूर्ख के सिवाय कुछ नही कहा जा सकता है।

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मैं मेंरे लोकप्रिय देव धाम श्री संकटमोचन हनुमानजी

इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दू धर्म को सम्‍पूर्ण विश्‍व में जन-जन तक पहुचाना चाहता हूँ और इसमें आपका साथ मिल जाये तो और बहुत ख़ुशी होगी

यह ब्लॉग श्रद्धालु भक्तों की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक ब्लॉग वेबसाइट है।

इस ब्लॉग में पुरे भारत और आस-पास के देशों में हिन्दू धर्म, हिन्दू पर्व, त्यौहार, देवी-देवताओं से सम्बंधित धार्मिक पुण्य स्थल व् उनके माहत्म्य,धाम, 12-ज्योतिर्लिंग, 52-शक्तिपीठ, सप्त नदी, सप्त मुनि, नवरात्र, सावन माह, दुर्गापूजा, दीपावली, होली, एकादशी, रामायण-महाभारत से जुड़े पहलुओं को यहाँ परस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ

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धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास

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"मेरा धर्म दृष्टिकोण" मेरे दृष्टिकोण में जीवन के कुछ क्षण वास्तव में इतने सरस और अविस्मरणीय होते हैं,जिनकी स्मृतियाँ सदैव के लिए ज़हन में मधुरता भर देती है !भगवान से यही प्रार्थना है कि यह मधुरता आजन्म आप के और मेरे साथ रहे !

"यदा यदा ही धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानम् धर्मस्य,तदात्मनं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय,संभवामि युगे युगे ||"
गीता में भगवानश्रीकृष्ण ने कहा है कि,जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर, अवतार लेकर भक्तों के दु:ख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है। भारत के तीर्थ स्थलों में कोई भोले का धाम है तो कोई जगत् नियंता श्री विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है। कोई श्री राम के चरण रज से परम पवित्र है तो कोई श्री कृष्ण की जीवन,कर्म व लीला भूमि है। कोई देवी मां के पूजनादि की आदि भूमि है तो कोई संत महात्माओं की कृपा दृष्टि से धर्म नगरी के रूप में स्थापित हुआ।

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें पंचदेव प्रमुख हैं। पंच देवों का तेज पुंज श्री हनुमान जी हैं। माता अन्जनी के गर्भ से प्रकट हनुमान जी में पांच देवताओं का तेज समाहित हैं।
अजर, अमर, गुणनिधि,सुत होहु' यह वरदान माता जानकी जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में दिया था। स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- 'सुन कपि तोहि समान उपकारी,नहि कोउ सुर, नर, मुनि,तुनधारी।' बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमान जी राम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है,उनमें बजरंगबली भी हैं। पवनसुत हनुमानजी भगवान् शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। हनुमानजी का अवतार भगवान् राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं।

प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित सात करोड़ मन्त्रों में श्री हनुमान जी की पूजा का विशेष उल्लेख है। श्री राम भक्त, रूद्र अवतार,सूर्य-शिष्य, वायु-पुत्र,केसरी-नन्दन, महाबल,श्री बालाजी के नाम से प्रसिद्ध तथा हनुमान जी पूरे भारतवर्ष में पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं। बिना भेदभाव के सभी हनुमान अर्चना के अधिकारी हैं। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की संज्ञा दी गई है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में हनुमान जी की पूजा की अलग परम्परा है।

सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव के ग्यारवें अवतार हनुमान जी को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है। इसी कारण हनुमान जी को कलयुग का जीवंत देवता भी कहा गया है।

इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री करायी और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया,यह सर्वविदित है।

भक्त की हर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हनुमान जी आसानी से कर देते है। संपूर्ण भारत देश में हनुमान जी के लाखों मंदिर स्थित है परंतु कुछ विशेषता के आधार पर हनुमान जी के प्रसिद्ध मंदिर भी है जहाँ भक्तों का सैलाब दिखाई देता है। इनमे से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है कोई मंदीर अपनी प्राचीनता की लिये फेमस है तो कोइ मंदीर अपनी भव्यता के लिए। जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए, वैसे तो हनुमान जी के सिद्धपीठों की गणना नहीं की जा सकती है, फिर भी यहाँ पर कुछ प्रमुख सिद्धपीठों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।जिस किसी भी स्थान पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है,उस स्थान पर स्थित हनुमान जी को भक्त आस्था आप्लावित होकर अपना सिद्धपीठ मानते हैं।देश के दूरस्थ गाँवों एवं कस्बों में भी ऐसे मंदिर स्थित हैं जो कि भले ही राज्य या जिला-स्तर पर प्रसिद्ध नहीं हैं,पर भक्तजनों के लिए सिद्धपीठ हैं।

सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

Tuesday 3 February 2015

5-श्री संकटमोचन श्रीहनुमानजी मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश (Shri Sankat Mochan Hanumanji Mandir, Varanasi, Uttar Pradesh)



5-श्री संकटमोचन श्रीहनुमानजी मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
(Shri Sankat Mochan Hanumanji Mandir, Varanasi, Uttar Pradesh)
 
श्री संकटमोचन श्रीहनुमानजी मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश
(Shri Sankat Mochan Hanumanji Mandir, Varanasi, Uttar Pradesh)
श्री हनुमानजी के पवित्र मंदिरों में से एक हैं वाराणसी का संकट मोचन हनुमान मंदिर । यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर, भारत में स्थित है। में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है।
ऐसी मान्यता है कि श्री हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है। इस मंदिर की एक अद्भुत विशेषता यह हैं कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई हैं कि, श्री हनुमानजी भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं”, जिनकी श्री हनुमानजी निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। श्री हनुमानजी के मंदिर के समीप ही अलग एक ओर भगवान विश्वनाथजी की लिंगमयी, श्री ठाकुर जी भगवान और भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। लगभग 1608 . 1611 . के बीच संकटमोचन मंदिर को बनाया गया है।    
मंदिर अलग एक ओर एक मूर्ति भी विराजमान है. श्री संकटमोचन हनुमानजी के समीप ही श्री नरसिंहजी के रूप में विराजमान हैं।   
इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।

संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की रचना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा 1900 ई० में हुई थी। यहाँ हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान एक विशेष शोभा यात्रा निकाली जाती है जो दुर्गाकुंड से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक चलायी जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती हैं।
 संकटमोचन मंदिर, वाराणसी
इतिहास
माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं जहा महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। संकट मोचन मंदिर की स्थापना कवि तुलसीदास ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के लेखक थे। परम्पराओं की माने तो कहा जाता हैं कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती हैं। हर मंगलवार और शनिवार, हज़ारों की तादाद में लोग भगवान हनुमान को पूजा अर्चना अर्पित करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियो में शनि व मंगल गृह गलत स्थान पर स्तिथ होता हैं वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषो का मानना हैं कि हनुमान की पूजा करने से मंगल गृह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और गृह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।
माना जाता हैं कि कथा के समय जब श्री तुलसीदासजी को कर्ण-घंटा-स्थल पर श्री हनुमानजी के दर्शन कोढ़ी-वेश में हुआ था। तब गोस्वामीजी उनके पीछे-पीछे चलने लगे, इसी मोहल्ले से दक्षिण घोर जंगल में पहुंचकर तुलसीदास जी उनके चरणों पर गिर पड़े। 
अत्यंत विनम्र प्रार्थना करने पर श्रीहनुमानजी प्रकट हो गए और बोले- तुम क्या चाहते हो ?’ गोस्वामीजी ने कहा- मैं श्रीराम-दर्शन चाहता हूँश्री हनुमानजी ने अपना दक्षिण बाहु उठाकर कहा- जाओ, चित्रकूट में प्रभु-दर्शन होगा.पुनः वाम बाहु को अपने ह्रदय पर रखकर बोले-हम दर्शन करा देंगे।
गोस्वामीजी ने कहा प्रभो ! आप इसी रूप से भक्तों के लिए यहीं पर निवास करेंश्री हनुमानजी ने तथास्तुकहा और वे वहीँ विराजमान हो गए। यह मूर्ति गोस्वामीजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयम्भू मूर्ति है। इस मूर्ति में श्रीहनुमानजी दक्षिण भुजा से भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं वाम भुजा उनके ह्रदय पर स्थित है, जिसका दर्शन केवल पुजारीजी को सर्वांग-स्नान के अवसर पर होता है। श्री विग्रह के नेत्रों से भक्तों पर अनवरत कृपा की वर्षा-सी होती रहती है। मान्यता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का कुछ अंश संकटमोचन मंदिर के पास विशाल पीपल के पेड़े के नीचे बैठकर लिखा था।   
भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू

मंदिर का पट प्रतिदिन प्रातः पांच बजे खुलता है और प्रातःकालीन आरती प्रारंभ होती है। बहुत से भक्तजनों का प्रतिदिन प्रातःकालीन आरती में सम्मिलित होने का नियम है।  प्रतिदिन रात्रि कालीन आरती  में लगभग साढ़े आठ बजे भगवान की जो आरती होती है उसमें भी प्रातःकालीन आरती जैसे ही दिव्य अनुभव भक्तों को होते हैं। रात्रि में दस बजे प्रतिदिन शयन-आरती होती है ( मंगलवार और शनिवार को यह समय साढ़े ग्यारह बजे हो जाता है) शयन-आरती के उपरांत मंदिर का पट बंद होते समय अखंड दीप के क्षीण प्रकाश में भगवान का मनोहारी दर्शन अपने में एक दिव्य अनुभव है।
प्रतिदिन दिनमें बारह से तीन बजे तक मंदिर के पट भोग लगाने के बाद बंद रहते है। प्रतिदिन सायंकाल पांच बजे से मानस की कथा होती है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तवृन्द अनेक प्रकार से पूजा करते हैं।
समय-समय से अखंड नाम-संकीर्तन, रामचरितमानस-पाठ, किष्किन्धाकाण्ड और सुन्दरकाण्ड के पाठ एवं अन्य अनुष्ठान चलते रहते हैं।
प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को श्री हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन-समारोह होता है।
प्रत्येक चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती महोत्सव होता है,इस अवसर पर श्रीहनुमान जी के बैठक की झांकी होती है और चार दिनतक सार्वभौम रामायण-सम्मलेन-महोत्सव एवं विराट संगीत-सम्मलेन होता है।
श्री हनुमानजी के पवित्र मंदिरों में से एक हैं वाराणसी का संकट मोचन हनुमान मंदिर । यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर, भारत में स्थित है। में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर एक छोटा सा वन है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली के योग्य है। मंदिर के प्रांगण में श्रीहनुमानजी की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के समीप ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है।
ऐसी मान्यता है कि श्री हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है। इस मंदिर की एक अद्भुत विशेषता यह हैं कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई हैं कि, श्री हनुमानजी भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं”, जिनकी श्री हनुमानजी निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। श्री हनुमानजी के मंदिर के समीप ही अलग एक ओर भगवान विश्वनाथजी की लिंगमयी, श्री ठाकुर जी भगवान और भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी स्थापित है। लगभग 1608 . 1611 . के बीच संकटमोचन मंदिर को बनाया गया है।    
मंदिर अलग एक ओर एक मूर्ति भी विराजमान है. श्री संकटमोचन हनुमानजी के समीप ही श्री नरसिंहजी के रूप में विराजमान हैं।   
इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं हाथ में भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन समारोह होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां श्रीहनुमान जयंती महोत्सव होता है। इस अवसर पर श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं संगीत सम्मेलन होता है।

संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की रचना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा 1900 ई० में हुई थी। यहाँ हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान एक विशेष शोभा यात्रा निकाली जाती है जो दुर्गाकुंड से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक चलायी जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती हैं।
इतिहास
माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं जहा महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। संकट मोचन मंदिर की स्थापना कवि तुलसीदास ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के लेखक थे। परम्पराओं की माने तो कहा जाता हैं कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती हैं। हर मंगलवार और शनिवार, हज़ारों की तादाद में लोग भगवान हनुमान को पूजा अर्चना अर्पित करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं अथवा जिन लोगों की कुंडलियो में शनि व मंगल गृह गलत स्थान पर स्तिथ होता हैं वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषो का मानना हैं कि हनुमान की पूजा करने से मंगल गृह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और गृह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।
माना जाता हैं कि कथा के समय जब श्री तुलसीदासजी को कर्ण-घंटा-स्थल पर श्री हनुमानजी के दर्शन कोढ़ी-वेश में हुआ था। तब गोस्वामीजी उनके पीछे-पीछे चलने लगे, इसी मोहल्ले से दक्षिण घोर जंगल में पहुंचकर तुलसीदास जी उनके चरणों पर गिर पड़े। 
अत्यंत विनम्र प्रार्थना करने पर श्रीहनुमानजी प्रकट हो गए और बोले- तुम क्या चाहते हो ?’ गोस्वामीजी ने कहा- मैं श्रीराम-दर्शन चाहता हूँश्री हनुमानजी ने अपना दक्षिण बाहु उठाकर कहा- जाओ, चित्रकूट में प्रभु-दर्शन होगा.पुनः वाम बाहु को अपने ह्रदय पर रखकर बोले-हम दर्शन करा देंगे।
गोस्वामीजी ने कहा प्रभो ! आप इसी रूप से भक्तों के लिए यहीं पर निवास करेंश्री हनुमानजी ने तथास्तुकहा और वे वहीँ विराजमान हो गए। यह मूर्ति गोस्वामीजी के तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयम्भू मूर्ति है। इस मूर्ति में श्रीहनुमानजी दक्षिण भुजा से भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं वाम भुजा उनके ह्रदय पर स्थित है, जिसका दर्शन केवल पुजारीजी को सर्वांग-स्नान के अवसर पर होता है। श्री विग्रह के नेत्रों से भक्तों पर अनवरत कृपा की वर्षा-सी होती रहती है। मान्यता है कि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस का कुछ अंश संकटमोचन मंदिर के पास विशाल पीपल के पेड़े के नीचे बैठकर लिखा था।   
मंदिर का पट प्रतिदिन प्रातः पांच बजे खुलता है और प्रातःकालीन आरती प्रारंभ होती है। बहुत से भक्तजनों का प्रतिदिन प्रातःकालीन आरती में सम्मिलित होने का नियम है।  प्रतिदिन रात्रि कालीन आरती  में लगभग साढ़े आठ बजे भगवान की जो आरती होती है उसमें भी प्रातःकालीन आरती जैसे ही दिव्य अनुभव भक्तों को होते हैं। रात्रि में दस बजे प्रतिदिन शयन-आरती होती है ( मंगलवार और शनिवार को यह समय साढ़े ग्यारह बजे हो जाता है) शयन-आरती के उपरांत मंदिर का पट बंद होते समय अखंड दीप के क्षीण प्रकाश में भगवान का मनोहारी दर्शन अपने में एक दिव्य अनुभव है।
प्रतिदिन दिनमें बारह से तीन बजे तक मंदिर के पट भोग लगाने के बाद बंद रहते है। प्रतिदिन सायंकाल पांच बजे से मानस की कथा होती है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तवृन्द अनेक प्रकार से पूजा करते हैं।
समय-समय से अखंड नाम-संकीर्तन, रामचरितमानस-पाठ, किष्किन्धाकाण्ड और सुन्दरकाण्ड के पाठ एवं अन्य अनुष्ठान चलते रहते हैं।
प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को श्री हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष आरती एवं पूजन-समारोह होता है।
प्रत्येक चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती महोत्सव होता है,इस अवसर पर श्रीहनुमान जी के बैठक की झांकी होती है और चार दिनतक सार्वभौम रामायण-सम्मलेन-महोत्सव एवं विराट संगीत-सम्मलेन होता है। 

सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

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