कुछ लोग जिवन मे बङी मेहनत व लगन के साथ तिर्थ,तप, जप,पूजा पाठ, दान धर्म तो करते है, मगर माता-पिता, गुरुदेव, कुलदेवी और देवता ,स्थान देवता, ग्राम देवता, क्षेत्रपाल देवता, वास्तु देवता, आदि का तिरस्कार करते हैँ। धिक्कार है फिर भी जीवन मे अच्छे पद प्रतिष्ठा, पैसा, उतम स्वास्थय व सेवा भावी सन्तान कि कामना करते है। ऐसे लोगो को भटकते मूर्ख के सिवाय कुछ नही कहा जा सकता है।

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मैं मेंरे लोकप्रिय देव धाम श्री संकटमोचन हनुमानजी

इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दू धर्म को सम्‍पूर्ण विश्‍व में जन-जन तक पहुचाना चाहता हूँ और इसमें आपका साथ मिल जाये तो और बहुत ख़ुशी होगी

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धर्मप्रेमी दर्शन आपकी सेवा में हाजिर है सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।- पेपसिह राठौङ तोगावास

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"मेरा धर्म दृष्टिकोण" मेरे दृष्टिकोण में जीवन के कुछ क्षण वास्तव में इतने सरस और अविस्मरणीय होते हैं,जिनकी स्मृतियाँ सदैव के लिए ज़हन में मधुरता भर देती है !भगवान से यही प्रार्थना है कि यह मधुरता आजन्म आप के और मेरे साथ रहे !

"यदा यदा ही धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानम् धर्मस्य,तदात्मनं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय,संभवामि युगे युगे ||"
गीता में भगवानश्रीकृष्ण ने कहा है कि,जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर, अवतार लेकर भक्तों के दु:ख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है। भारत के तीर्थ स्थलों में कोई भोले का धाम है तो कोई जगत् नियंता श्री विष्णु का प्रतिनिधित्व करता है। कोई श्री राम के चरण रज से परम पवित्र है तो कोई श्री कृष्ण की जीवन,कर्म व लीला भूमि है। कोई देवी मां के पूजनादि की आदि भूमि है तो कोई संत महात्माओं की कृपा दृष्टि से धर्म नगरी के रूप में स्थापित हुआ।

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें पंचदेव प्रमुख हैं। पंच देवों का तेज पुंज श्री हनुमान जी हैं। माता अन्जनी के गर्भ से प्रकट हनुमान जी में पांच देवताओं का तेज समाहित हैं।
अजर, अमर, गुणनिधि,सुत होहु' यह वरदान माता जानकी जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में दिया था। स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- 'सुन कपि तोहि समान उपकारी,नहि कोउ सुर, नर, मुनि,तुनधारी।' बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमान जी राम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है,उनमें बजरंगबली भी हैं। पवनसुत हनुमानजी भगवान् शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। हनुमानजी का अवतार भगवान् राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं।

प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित सात करोड़ मन्त्रों में श्री हनुमान जी की पूजा का विशेष उल्लेख है। श्री राम भक्त, रूद्र अवतार,सूर्य-शिष्य, वायु-पुत्र,केसरी-नन्दन, महाबल,श्री बालाजी के नाम से प्रसिद्ध तथा हनुमान जी पूरे भारतवर्ष में पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं। बिना भेदभाव के सभी हनुमान अर्चना के अधिकारी हैं। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की संज्ञा दी गई है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में हनुमान जी की पूजा की अलग परम्परा है।

सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव के ग्यारवें अवतार हनुमान जी को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है। इसी कारण हनुमान जी को कलयुग का जीवंत देवता भी कहा गया है।

इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री करायी और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया,यह सर्वविदित है।

भक्त की हर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हनुमान जी आसानी से कर देते है। संपूर्ण भारत देश में हनुमान जी के लाखों मंदिर स्थित है परंतु कुछ विशेषता के आधार पर हनुमान जी के प्रसिद्ध मंदिर भी है जहाँ भक्तों का सैलाब दिखाई देता है। इनमे से हर मंदिर की अपनी एक विशेषता है कोई मंदीर अपनी प्राचीनता की लिये फेमस है तो कोइ मंदीर अपनी भव्यता के लिए। जबकि कई मंदिर अपनी अनोखी हनुमान मूर्त्तियों के लिए, वैसे तो हनुमान जी के सिद्धपीठों की गणना नहीं की जा सकती है, फिर भी यहाँ पर कुछ प्रमुख सिद्धपीठों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।जिस किसी भी स्थान पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है,उस स्थान पर स्थित हनुमान जी को भक्त आस्था आप्लावित होकर अपना सिद्धपीठ मानते हैं।देश के दूरस्थ गाँवों एवं कस्बों में भी ऐसे मंदिर स्थित हैं जो कि भले ही राज्य या जिला-स्तर पर प्रसिद्ध नहीं हैं,पर भक्तजनों के लिए सिद्धपीठ हैं।

सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

Tuesday 3 February 2015

11-गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - छत्तीसगढ़ (Girijabandh Hanuman Temple - Ratnpur - Chhattisgarh)



11-गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - छत्तीसगढ़
(Girijabandh Hanuman Temple - Ratnpur - Chhattisgarh)
 गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - छत्तीसगढ़ (Girijabandh Hanuman Temple - Ratnpur - Chhattisgarh)
पवन पुत्र व राम भक्त हनुमान को युगों से लोग पूजते आ रहे हैं. उन्हें बाल ब्रह्मचारी भी कहा जाता है जिस कारण स्त्रियों को उनकी किसी भी मूर्ति को छूने से मना किया गया है।   वे देवता रूप में विभिन्न मंदिरों में पूजे जाते हैं लेकिन एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर हनुमान को पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के रूप में पूजा जाता है। 
आपको सुनकर आश्चर्य लगेगा, लेकिन दुनिया में एक मंदिर ऐसा भी है जहां हनुमान पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के वेश में नजर आते हैं। यह प्राचीन मंदिर बिलासपुर के पास है। हनुमानजी के स्त्री वेश में आने की यह कथा कोई सौ दौ सौ नहीं बल्कि दस हजार साल पुरानी मानी जाती है। 
गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - एक अति प्राचीन मंदिर जहाँ स्त्री रूप में होती है हनुमान कि पूजा
गिरजाबंध हनुमान मंदिर ,रतनपुर में एक अति प्राचीन मंदिर है, जहाँ हनुमान कि स्त्री रूप में पूजा होती है, रतनपुर स्थान बिलासपुर से 25 कि. मी. दूर है । इसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह देवस्थान पूरे भारत में सबसे अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां हनुमान नारी स्वरूप में हैं। इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। भक्तों की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।

रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था ।पौराणिक और एतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस देवस्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह लगभग दस हजार वर्ष पुराना है। एक दिन रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू क़ा ध्यान अपनी शारीरिक अस्वस्थता की ओर गया। वे विचार करने लगे-मैं इतना बडा राजा हूं मगर किसी काम का नहीं। मुझे कोढ़ का रोग हो गया है। अनेक इलाज करवाया पर कोई दवा काम नहीं आई। इस रोग के रहते न मैं किसी को स्पर्श कर सकता हूं। न ही किसी के साथ रमण कर सकता हूं, इस त्रास भरे जीवन से मर जाना अच्छा है। सोचते सोचते राजा को नींद आ गयी।
गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर, एक अति प्राचीन मंदिर
राजा ने सपने में देखा कि संकटमोचन हनुमान जी  उनके सामने हैं, भेष देवी सा है, पर देवी है नहीं, लंगूर हैं पर पूंछ नहीं जिनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली है तो दूसरे हाथ में राम मुद्रा अंकित है। कानों में भव्य कुंडल हैं। माथे पर सुंदर मुकुट माला। अष्ट सिंगार से युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से एक बात कही।
हनुमानजी ने राजा से कहा कि हे राजन् मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा। तू मंदिर का निर्माण करवा कर उसमें मुझे बैठा। मंदिर के पीछे तालाब खुदवाकर उसमें स्नान कर और मेरी विधिवत् पूजा कर। इससे तुम्हारे शरीर में हुए कोढ़ का नाश हो जाएगा। इसके बाद राजा ने विद्धानों से सलाह ली। उन्होंने राजा को मंदिर बनाने की सलाह दी। राजा ने गिरजाबन्ध में मंदिर बनवाया। जब मंदिर पूरा हुआ तो राजा ने सोचा मूर्ति कहां से लायी जाए। एक रात स्वप्न में फिर हनुमान जी आए और कहा मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई है। तू कुण्ड से उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा। दूसरे दिन राजा अपने परिजनों और पुरोहितों को साथ देवी महामाया के दरबार में गए। वहां राजा व उनके साथ गए लोगों ने कुण्ड में मूर्ति की तलाश की पर उन्हें मूर्ति नहीं मिली। हताश राजा महल में लौट आए।
संध्या आरती पूजन कर विश्राम करने लगे। मन बैचेन हनुमान जी के दर्शन देकर कुण्ड से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करने को कहा है। और कुण्ड में मूर्ति मिली नहीं इसी उधेड़ बुन में राजा को नींद आ गई। नींद का झोंका आते ही सपने में फिर हनुमान जी आ गए और करने लगे- राजा तू हताश न हो मैं वहीं हूं तूने ठीक से तलाश नहीं किया। जाकर वहां घाट में देखो जहां लोग पानी लेते हैं, स्नान करते हैं उसी में मेरी मूर्ति पड़ी हुई है।
राजा ने दूसरे दिन जाकर देखा तो सचमुच वह अदभुत मूर्ति उनको घाट में मिल गई। यह वही मूर्ति थी जिसे राजा ने स्वप्न में देखा था। जिसके अंग प्रत्यंग से तेज पुंज की छटा निकल रही थी। अष्ट सिंगार से युक्त मूर्ति के बायें कंधे पर श्री राम लला और दायें पर अनुज लक्ष्मण के स्वरूप विराजमान, दोनों पैरों में निशाचरों दो दबाये हुए। इस अदभुत मूर्ति को देखकर राजा मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर विधिविधान पूर्वक मूर्ति को मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दी और मंदिर के पीछे तालाब खुदवाया जिसका नाम गिरजाबंद रख दिया। मनवांछित फल पाकर राजा ने हनुमान जी से वरदान मांगा कि हे प्रभु, जो यहां दर्शन करने को आये उसका सभी मनोरथ सफल हो। इस तरह राजा प्रृथ्वी देवजू द्वारा बनवाया यह मंदिर भक्तों के कष्ट निवारण का एसा केंद्र हो गया, जहां के प्रति ये आम धारणा है कि हनुमान जी का यह स्वरूप राजा के ही नहीं प्रजा के कष्ट भी दूर करने के लिए स्वयं हनुमानी महाराज ने राजा को प्रेरित करके बनवाया है।
इस दक्षिण मुखी हनुमान जी की मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण हैं। रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए उनके बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाये पैर के नीचे कसाई दबा है। हनुमान जी के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण को बैठाया है। एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही मूर्ति स्थापित है. 
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही मूर्ति स्थापित है। राजा को मिली मूर्ति और रमई पाट की इस मूर्ति में अनेक विशेष समानताएं हैं। एक अद्भुत तेज है इस मूर्ति में-
इसका मुख दक्षिण की ओर है और साथ ही मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण भी है।
मूर्ति में हनुमान को रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए दर्शाया गया है।
यहां हनुमान के बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे कसाई दबा हुआ है।
हनुमान के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण की झलक है उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।
सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

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